दिल्ली विवि ने इतिहास की प्रवेश परीक्षा अंग्रेजी में ली, भूख हड़ताल पर छात्र। छात्रों का आरोप भाषाई भेदभाव कर रहा विश्वविद्यालय।
रिपोर्ट4इंडिया ब्यूरो।
नई दिल्ली। जिस देश के प्रधानमंत्री अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ्रांस, चीन, जापान में हिन्दी में अपनी आवाज़ को बुलंद कर जिस भाषा को व्यवहारिक स्वीकार्यता दिलाने में प्रमुख भूमिका निभाई हो, उस हिन्दी की अपने देश में ही लगातार अर्थी उठाने की साजिश हो रही है। हिन्दी के वजूद को मिटाने में सबसे बड़ा हाथ वामपंथियों का है। वामपंथी जानते हैं कि हिन्दी भाषा-भाषियों ने बौद्धिकता के छ्द्म आवरण में वामपंथी विचारधारा बचाए रखने का खेल समझ लिया है। इसलिए ये अंग्रेजी में अपना खेल खेलने की कोशिश में लंबे समय तक लगे रहे। इन्हें वैश्विक बौद्धिक न समर्थन मिलता रहा है और ये खूब देश-विदेश घूमते रहे। विडंबना है कि अपने देश में जनतांत्रिक समर्थन के मामले में इस पैदल समूह का संस्थागत दबदबा बना रहा।
पिछले कई दशकों से देश भर के विश्वविद्यालयों में खासकर इतिहास विभाग में वामपंथियों का दबदबा रहा है। कहने को तो ये कुलीन वर्ग व्यवस्था के विरोधी हैं लेकिन वास्तव में ये वामपंथी इतिहास के तथाकथित जानकार देश के तमाम विवियों में वामपंथी विचारधारा से ओतप्रोत कुलीन छात्रों को भरते रहे, जो अंग्रेजी और पाश्चात्य मॉडल के विश्वासी थे। वामपंथियों के लिए भारत में खासकर, हिन्दू सभ्यता और संस्कृति का विरोध ही मुख्य आधार रहा है, इसीलिए ये हिन्दी को पचा नहीं पाते।
बहरहाल, दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के छात्र एमफिल-पीएचडी की प्रवेश परीक्षा केवल अंग्रेजी में लिए जाने के विरोध में आर्ट्स फैकल्टी के सामने भूख हड़ताल पर बैठ गए। उनकी मांग है कि परीक्षा दोबारा हिन्दी में प्रश्न पत्र जारी कर ली जाए।
आंदोलनरत छात्रों का कहना है कि इतिहास विभाग में इससे पूर्व की प्रवेश परीक्षाएं हिंदी और अंग्रेजी दोनों ही भाषाओं में कराई जाती रही हैं, लेकिन इस साल 21 जून को आयोजित प्रवेश परीक्षा केवल अंग्रेजी भाषा में ली गई, जिससे हिंदी माध्यम से स्नातक और परास्नातक इतिहास से उत्तीर्ण परीक्षार्थियों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। छात्रों ने विभागाध्यक्ष प्रो. सुनील कुमार पर भ्रष्टाचार, भाषाई भेदभाव और सीटों को बेचने का आरोप लगाया है और विभागाध्यक्ष के इस्तीफे की मांग की है।
छात्रों का कहना है कि जून 2018 में आयोजित एमफिल-पीएचडी प्रवेश परीक्षा केवल अंग्रेजी भाषा में लेने के कारण भारत के ग्रामीण क्षेत्रों से परीक्षा में सम्मिलित होने वाले गैर अंग्रेजी भाषी छात्रों को ‘समान स्तर पर बौद्धिक परीक्षण (equal level playing field) नहीं हुआ। साथ ही, छात्रों ने इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष से परास्नातक सेमेस्टर परीक्षा में परंपरागत 8 प्रश्न में से 4 प्रश्न करने की पद्धति के स्थान पर 6 में से 3 प्रश्न करने जैसी परीक्षा नियम को भी निरस्त करने की मांग की।
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