वैज्ञानिकों के शोध व विश्लेषण के मुताबिक कम स कम बारिश का 31 फीसद पानी वापस धरती में जाना चाहिए
डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।
21वीं सदी की बात करें तो पिछले 21 सालों में इस वर्ष बारिश ठीक-ठाक हुई है। हालांकि, जून व अगस्त माह में औसतन जहां 8 फीसद कम बारिश हुई वहीं जून माह में 10 फीसद अधिक वारिश हुई। जहां तक सितम्बर महिने की बात है, अबतक करीब 17 फीसद अधिक बारिश हुई है। सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस बार कमोवेश पूरे में देश में और मैदानी इलाकों में भी अच्छी बारिश हुई। जहां तक समुद्री किनारे के इलाकों की बात है तो वहां करीब 10 फीसद अधिक बारिश हुई और इस वर्ष कई चक्रवाती तूफानों के आने के कारण भी अच्छी बारिश हुई। इस कारण से उत्तर-पूर्व के मैदानी इलाकों में भी औसतन अच्छी बारिश हुई।

सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि क्या अधिक बारिश का लाभ हमें जाड़ा और गर्मी के मौसम में मिल सकेगा? मौसम वैज्ञानिकों की हमेशा से यह चिंता रही है कि देश में जितना बारिश होता है, उसका तय हिस्सा भी भू-गर्भ में नहीं पहुंचता, जिसके कारण अच्छी बारिश का समग्र लाभ हमें नहीं मिल पाता है। भू-जल के रिचार्ज नहीं होने से बारिश के बाद हमारी नदियां तेजी से सूख जाती है। ताल-तलैया, पोखरा, कुंड आदि जल के स्त्रोत भी सूख जाते हैं।
चुकि हम पूरे वर्ष धरती से जल का दोहन करते हैं। परंतु, उसके अनुपात में बारिश का पानी वापस धरती में नहीं जाता है और यही सबसे बड़ी समस्या है। वैज्ञानिकों की मानें तो साल भर में होने वाली कुल बारिश का कम से कम 31 प्रतिशत पानी धरती के भीतर जाना चाहिए। तभी सामान्य नदियों (बिना हिमनद वाली) और विभिन्न जल स्रोतों में पानी बचा रह सकेगा। परंतु, परेशानी यह है कि कुल बारिश का औसतन 12-13 फीसद पानी ही धरती में जा रहा है। हिमालयन क्षेत्र में भी स्थिति इससे अलग नहीं है और जब हिमालयी व पहाड़ी क्षेत्रों में ही स्थिति गंभीर है तो मैदानों में कैसी स्थिति होगी, सहज अंदाजा लगाया जा सकता है।

हिमालयन क्षेत्र में स्थित कुमाऊं विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रोफेसर व नेचुरल रिसोर्स डाटा मैनेजमेंट सिस्टम के प्रिंसिपल इंवेस्टीगेटर प्रो. जेएस रावत ने छह साल के अपने पर्वतीय क्षेत्र में केन्द्रित अध्ययन के बाद जो निष्कर्ष निकाला वह बेहद चिंताजनक है। शोध से स्पष्ट हुआ कि बांज के वन क्षेत्र में 23 प्रतिशत, चीड़ के वन क्षेत्र में 16 प्रतिशत, कृषि भूमि में 18, बंजर भूमि में पांच तथा शहरी क्षेत्र में मात्र तीन प्रतिशत ही पानी धरती में जमा हुआ। यानी, जो 31 फीसद रिचार्ज होना चाहिए वह औसतन मात्र 13 प्रतिशत ही हुआ। जो बेहद कम है। जबकि शहरी क्षेत्र में तो रिचार्ज की स्थिति और भी चिंताजनक है। शहरों में कंक्रीट के जाल की वजह से बारिश का मात्र दो प्रतिशत पानी ही धरती के भीतर जमा हो पाता है। जबकि शहरों में भू-गर्भ से पानी गांवों के मुकाबले 22 गुना अधिक निकाला जाता है।
बारिश का पानी अगर घरती में नहीं जाएगा तो गर्मी के मौसम में जलस्रोत और गैर हिमनद नदियां तेजी से सूखेंगी और एक स्तर के बाद जल स्रोतों से पानी आना बंद हो जाएगा। तेजी से बढ़ती आबादी, वनों का क्षेत्रफल लगातार कम होने आदि से भू-जल रिचार्ज का स्तर लगातार कम हो रहा है। भवनों, सड़कों तथा अन्य कंक्रीट निर्माण कार्यों से अधिकांश भूमि कवर हो जा रही है प्राकृतिक रूप से भू-जल रिचार्ज नहीं हो पा रहा है।