हम सब भाँति करब सेवकाई…

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जय सियाराम जय जय ,सियाराम

“विपरित परिस्थिति में समय को बीताने के लिए सबके ‘संग-साथ’ की जरुरत होती है,
परेशानी के काल से उचित तरीके से बाहर निकलने का यही उपाय है।” 

डॉ. मनोज कुमार तिवारी।  

देखें तो,  यह श्रीरामचरितमानस के अयोध्याकांड के 18वें विश्राम की चौपाई है। प्रसंग यह कि, भगवान श्रीरामचंद्रजी महाराज, माता जानकी व अनुज श्री लक्ष्मणजी के साथ सबके मान-मनौवल के प्रयासों के बावजूद पिता की आज्ञा को सिरोधार्य करते हुए 14 वर्ष तक वन में जीवन बीताने के संकल्प को एकबार फिर से पक्का कर चित्रकूट में निवास का संकल्प लेते हैं। इस वन क्षेत्र में रहने वाले वनवासी ( मुनिगण और कोल-कीरात-भील आदि) भगवान से याचना करते हैं कि हम भी आपके साथ ही रहेंगे। यह बेहद विपरित परिस्थिति का काल है और इसे बीताने के लिए सबके ‘संग-साथ’ की जरुरत है।

वे कहते हैं, हम तो जंगल-जंगल घूमते हैं, यह हमारा घऱ है। हम हर एक रस्ते, पगडंडियां जानते-पहचानते हैं। जीव-जंतुओं के निवास क्षेत्र और उनकी आवाज़ें पहचानते हैं। आपको (श्रीरामजी), उन सब परिस्थितियों, माहौल का अनुभव नहीं है। आपको आज्ञा 14 वर्षों तक वन में निवास करने की है, हमारा साथ व अनुभव लेने में मनाही नहीं है। कृपाकर, हमारा साथ व सहयोग लें। आगे गोस्वामी तुलसीदासजी इन सभी वनवासियों के हृदय के अनुराग-भाव को प्रकट कर लिखते हैं-

धन्य भूमि बन पंथ पहारा, जहँ जहँ नाथ पाउ तुम्ह धारा। 
धन्य बिहग मृग काननचारी, सफल जनम भए तुम्हहि निहारी।।

अर्थात्- हे नाथ! जहां-जहां भी आपने अपने चरण रखे हैं, वह पृथ्वी, वन मार्ग, पहाड़ सब धन्य हो गये हैं, साथ ही, वन में विचरने वाले पक्षी और पशु भी आपको देखकर धन्य हो गये हैं। वे कहते हैं- हम सब भी परिवार सहित धन्य हो गये हैं आपके दर्शन पाकर। आपने बड़ी अच्छी जगह (चित्रकूट) निवास का फैसला किया है और आप हर मौसम में और हर परिस्थिति में यहां सुखी रहिएगा।

जीवन का सार अपनों-संबंधों का साथ और अनुभवों से सहर्ष कुछ पाने, कुछ बीताने का भी है। वर्तमान में भारत में कोरोना विपत्ति का ऐसा ही काल है जहां सबको मिलकर लड़ने की है, तभी हम इस परेशानी के काल से उचित तरीके से बाहर निकल पायेंगे।