अयोध्या विवादित ढांचा केस में पर्सनल लॉ बोर्ड की हालत ‘बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना’ जैसी। अपने का मुसलमानों के वोटबैंक का मालिक समझने वाला मुसलिम बोर्ड अपनी पकड़ ढीली करने को तैयार नहीं।
रिपोर्ट4इंडिया ब्यूरो/ नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में अयोध्या केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की बैठक विवादों से घिर गया है। हालांकि, बैठक के बाद पर्सनल लॉ बोर्ड ने प्रेस कांफ्रेंस कर सबकुछ ठीक बताने की कोसिश की लेकिन जो दिन भर घटनाएं घटी उससे स्पष्ट है कि रिव्यू पिटीशन के फैसले पर मुसलिम धर्म गुरुओं व पर्सनल लॉ के सदस्यों में सर्वसम्मति नहीं है और उनकी राय अलग-अलग है।
सबसे पहले तो इस बैठक को लेकर ही बोर्ड के कई सदस्यों ने शिरकत नहीं करना ही बेहतर समझा। जो सदस्य या पदाधिकारी शामिल हुए भी तो उन्होंने रिव्यू पिटीशन पर अपना समर्थन नहीं दिया। साथ ही, कहा गया कि फैसले में सभी जजों की सर्वानुमत्ति को देखते हुए रिव्यू पिटीशन का कोई मतलब नहीं रह जाता है।
सबसे पहले तो पर्सनल लॉ बोर्ड की बैठक को लेकर ही विवाद उठ खड़ा हुआ। पहले से तय बैठक स्थान को बदलना पड़ा। बोर्ड में पचास सदस्यों में से करीब 35 उपस्थित हुए। बैठक में अतिरिक्त विशेष आमंत्रित मुस्लिम नेता भी शामिल हुए। जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी बैठक को बीच में ही छोड़ वापस लौट गए। हालांकि उन्होंने मीडिया के सामने इस मसले पर चुप ही रहे परंतु, बैठक बीच में छोड़ कर जाने पर कई तरह के कयास लगाए गए। हालांकि, कई सदस्यों से बैठक को लेकर पूछे जाने पर आंतरिक मसला बताते हुए चुप रहे। दूसरी तरफ बोर्ड के उपाध्यक्ष व वरिष्ठ शिया धर्मगुरु मौलाना डॉ. कल्बे सादिक बैठक में उपस्थित ही नहीं हुए।
उधर, कोर्ट में मुख्य पक्षकार रहे इकबाल अंसारी ने एकबार फिर दोहराया कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट का फैसला मंजूर है। देश के आइन का मत ही हमारामत है। परंतु, इकबाल अंसारी के मतव्य पर जफरयाब जिलानी एक अलग राग छेड़ दिया और कह दिया कि वे पुलिस-प्रशासन के दबाव में नहीं बोल रहे हैं।