एनसीपी बोली, पार्टी में कोई भी शिवसेना का समर्थन करना नहीं चाहता। बीजेपी के रूख में भी आया परिवर्तन।
Manoj Kumar Tiwary/Report4india.
नई दिल्ली। शिवसेना नेताओं के तंजपूर्ण व हवा-हवायी बयानों के साथ ही पार्टी के मुखपत्र सामना में प्रकाशित सामग्री से राजनीति में हर कोई दूर ही रहना चाहती है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा रहती है कि शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन एकल राजनीतिक-वैचारिक आधार की अपेक्षा मजबूरी पर ज्यादा टिका है और यह मजबूरी ‘भगवा’ है और इसी कारण कांग्रेस व एनसीपी जैसी राजनीतिक पार्टियां दोनों से दूरी बनाकर रखना चाहती हैं। हालांकि, कुछ विद्वानजन बीजेपी के कांग्रेसीकरण की बात स्वीकार करते परंतु, शिवसेना के साथ ऐसा भी नहीं जुड़ा है। महाराष्ट्र में सत्ता बराबर-बराबर की हिस्सेदारी को लेकर चुनाव परिणाम के दूसरे सप्ताह बाद भी सरकार गठन को लेकर अनिश्चितता के बादल पूरी तरह से काबिज हैं।
इसी बीच, दबाव की राजनीति को और आगे बढ़ाने की मकसद से शिवसेना के बड़बोले नेता संजय राउत बृहस्पतिवार को एनसीपी प्रमुख शरद पवार से मिले। इस खबर के बाद मीडिया में हलचल मची तो राउत ने इस मुलाकात को अराजनीतिक बनाने की कोशिश की। साथ ही, मामला राजनीतिक बना रहे इसीलिए लगे हाथ यह बयान भी दे दिया कि अगर बीजेपी 105 सीटों से सरकार बना लेगी तो बना ले, हम भी देखेंगे कि किस संविधान के तहत ऐसा संभव है। संजय राउट के पहले हरियाणा में बीजेपी के साथ साझीदार जेजेपी पर निशाना साधा था और कहा था कि यहां (महाराष्ट्र में कोई पार्टी ऐसी नहीं है कि जिसके नेता जेल में हैं। राजनीतिक के जानकार मानते हैं कि संजय राउत इस बयान ने ज्यादा खेल खराब कर दिया। अब, बीजेपी किसी भी तरह से शिवसेना से झूकने को तैयार नहीं है, चाहे कोई और सरकार बना ले अथवा दोबारा से चुनाव ही क्यों न हो जाए।
संजय राउत के शरद पवार से मुलाकात के बाद एनसीपी के नेताओं ने अपने सार्वजनिक बयान में कहा कि उनकी पार्टी में कोई भी शिवसेना के साथ जाने को तैयार नहीं है। एनसीपी के सार्वजनिक रूप से इस बयान के बाद शिवसेना के पेशानी पर बल पैदा हो गया है। यही कारण है कि शिवसेना के रूख में एकबार फिर से बदलाव की झलक दिखाई दे रही है।