बिहार में जाति रिपोर्ट जारी, ‘गणना’ का हुआ पटाक्षेप …फिर ‘बैतलवा’ उसी डाल पर!

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प्रशांत किशोर …पूरे बिहार में घूम-घूम कर कह रहे हैं …जाति के नाम पर बंटकर वोट देना है तो यह मत कहना कि परेशानी बढ़ गई, …रोजगार नहीं मिला, …सिस्टम सड़ गया है। …फिर इसके लिए किसी नेता को दोष मत देना, …समझना, जैसा तुमने किया है उसी का फल भोग रहे।  

बिहार की जनसंख्या 13 करोड़ सवा सात लाख। अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36 फीसद, पिछड़ा वर्ग 27 फीसद, सामान्य वर्ग 15.52 फीसद, अनुसूचित जाति 19. 65 फीसद, अनुसूचित जनजाति 1.68 फीसद है। 

मनोज कुमार तिवारी/ नई दिल्ली।   

लोकसभा चुनाव से पहले बिहार सरकार ने सोमवार को जातीय गणना के आंकड़े जारी किये। इस जातिगत जनगणना में अत्यंत पिछड़ा वर्ग 36 फीसद, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) 27 फीसद जिसमें सबसे ज्यादा 14.26 फीसद यादव हैं। ब्राह्मण 3.65 फीसद, राजपूत (ठाकुर) 3.45 फीसद और कायस्थ (लाला) 0.60 फीसद है। इस जनगणना रिपोर्ट में सबसे बड़ी बात यह है कि बिहार की 17.7 फीसद मुसलिम आबादी यानी भी इन्हीं जातियों के आंकड़े में विभाजित है।

सरकार के प्रभारी मुख्य सचिव विवेक कुमार सिंह ने जातीय गणना पर रिपोर्ट जारी की और कहा कि बिहार की जनसंख्या 13 करोड़ 7 लाख 25 हजार 310 है। इसमें 2 करोड़ 83 लाख 44 हजार 160 परिवार हैं। बिहार की आबादी में करीब 82 फीसदी हिंदू और 17.7 फीसदी मुसलमान हैं। बिहार में 2011 से 2022 के बीच हिंदुओं की आबादी घटी है। 2011 की जनगणना के अनुसार हिंदू आबादी 82.7 फीसद और मुस्लिम आबादी 16.9 फीसद थी।

बिहार में जैसे ही जातिगत जनगणना जारी हुए वैसे ही राजनीति शुरू हो गई। मोदी सरकार आने के बाद से जो पार्टियों मुसलिम वोट पर आश्रित हैं, उन्हें लगता है कि भाजपा के विरोध में हिन्दू वोट में बंटवारे के बिना वे सत्ता के दरवाजे पर नहीं पहुंच सकते हैं। ऐसे में ही एक कांग्रेस व जाति आधारित पार्टियां हिन्दू वोट के बंटवारे से अपने भविष्य की राजनीति तलाश रही है। जातिगत राजनीतिक पार्टियों की बात तो छोड़ दीजिए, राहुल गांधी, सोनिया गांधी और उनके पीछे पूरी कांग्रेस देशभर में जातिगत जनगणना की मांग कर रही है।

वैसे भी, बिहार में पिछले साढ़े पांच दशक से यानी 1967 के बाद से ही जाति की राजनीति चल रही है पर, बदला क्या? यही न… पार्टियां बढ़ती गईं और समाज जाति में टूटता गया। सरकारी सिस्टम भष्टाचार की भेंट चढ़ता गया। एक के बदले पांच लगाने पर भी जमीन पर लोगों को राहत नहीं मिल रही। आर्थिक विकास दर में सबसे नीचे बिहार के लोग दिल्ली से 10 रुपये प्रति लीटर अधिक देकर बिहार में पेट्रोल-डीजल खरीदते हैं, इलाज के लिए वाराणसी व दिल्ली आने को मजबूर हैं। आज जारी बिहार सरकार के आंकड़े के अनुसार 57 लाख लोग बिहार से बाहर रोजगार के लिए रहते हैं। हालांकि, यह सरकारी आंकड़ा कहीं से भी उचित प्रतीत नहीं हो रहा है, मात्र दिल्ली-एनसीआर में ही बिहार के 50 लाख से ज्यादा लोग रह रहे हैं। ऐसे में जाति जनगणना के आंकड़े से बदहाल बिहार पर कौन-सा असर होगा। जाति के नाम पर गोलबंदी के लिए हल्ला मचाने वाले जाति के नेता, उनका कुनबा मलाई खाता रहेगा।

प्रशांत किशोर तो पूरे बिहार में यही घूम-घूम कर कह रहे हैं कि जाति के नाम पर बंटकर वोट देना है तो आगे यह मत कहना कि परेशानी बढ़ गई है, रोजगार नहीं मिला, सिस्टम सड़ गया है। फिर इन सबके लिए किसी नेता को दोष मत देना, यह समझना कि जैसा तुमने किया है उसी का फल भोग रहे हो।