कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव : ‘फिक्स मैच’ में जीत का एन्जॉय! 

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“अहमद पटेल के बाद ‘कांग्रेस दिल्ली दरबार’ के सबसे बड़े तोते  मल्लिकार्जुन खड़गे पर कांग्रेस परिवार का पूरा दारोमदार है। अशोक गहलोत प्रकरण के बाद  अब ‘राजीव गांधी परिवार’ के एकमात्र विश्वासी खड़गे हैं। इसीलिए ‘परिवार’ का इशारा पाकर सभी दरबारी खड़गे के साथ खड़े हो गये हैं। बयानवीर दिग्गी तो फॉर्म भरने की भी हिम्मत नहीं कर सके।”

“बदलते राजनीतिक परिदृश्य में ‘सवाल यह कि जब खड़गे ही बड़े विश्वासी (एकमात्र) थे तो फिर अध्यक्ष पद अशोक गहलोत को परोसने का फैसला क्यों हुआ? दरअसल, गांधी परिवार’ को मालुम है कि ‘खड़ाऊ’ उठाने वाले को अंतत: अपनी कुर्बानी देनी होगी। खड़गे नेशनल हेराल्ड मामले में सोनिया-राहुल की सुरक्षा कवच हैं। भरसक, उन्हें अध्यक्ष पद पर बैठाकर भविष्य के आसन्न विवादों-घमासानों से दूर रखने का प्रयास किया गया था। परंतु, अशोक गहलोत ने खेल खराब कर दिया।”    

डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।

अंतत: ‘मोदी युग’ की आंधी में गांधी परिवार ने योजनाबद्ध कांग्रेस अध्यक्ष पद का ‘खड़ाऊ’ अपने ‘विश्वासपात्र’ को सौपने को विवश हुआ। इस कड़ी में अशोक गहलोत पहली पसंद बने। इसके पीछे राजस्थान विधानसभा चुनाव से पहले वहां नेतृत्व परिवर्तन को ध्यान में रखा गया। वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कांग्रेस अध्यक्ष पद से ही अशोक गहलोत की तब्दीली संभव थी। परंतु, अशोक गहलोत ने राजस्थान से विदाई और भविष्य में उठा-पटक की राजनीतिक चुनौतियों को समझते हुए असमंजस में पड़ गये और दिल्ली से जयपुर पहुंचते ही खेल कर दिया। गहलोत के पलटवार से गांधी परिवार को सांप सुंघ गया। आनन-फानन में तय कर लिया गया कि अब खड़गे ही ‘खड़ाऊं’ संभाले। गहलोत के ‘धोबिया-पछाड़’ का असर यह रहा कि दिग्विजय सिंह ने अपने को आगे बढ़ा दिया। एक प्रकार से यह दिग्विजय सिंह का ‘दरबारी राग’ ही था। ऐसी स्थिति में अचानक कई नामों के सामने आने और शशि थरूर के कमर कसे जाने से परेशान सोनिया गांधी ने बुजुर्ग विश्वास-पात्र खड़गे को मैदान में उतार दिया।

शुरू में शशि थरूर ने चुनाव को ‘फ्रेंडली मैच’ बताते रहे परंतु, अशोक गहलोत प्रकरण के बाद बदले हालात में फेयर मैच होने पर आशंका के साथ ही वोटर लिस्ट को सार्वजनिक करने पर जोर देने लगे। साथ ही, यह बताना नहीं भूले कि उन्हें कांग्रेस के कई नेताओं का समर्थन प्राप्त है। शशि थरूर के इस बयान के बाद गांधी परिवार खुलकर खड़गे के साथ खड़ी हो गई। परिवार का ईशारा पाकर कांग्रेस दरबारी नेताओं की फौज खड़गे के साथ दिखाई देने लगी। अशोक गहलोत, दिग्विजय सिंह, प्रमोद तिवारी, पीएल पुनिया, एके एंटनी, पवन कुमार बंसल, मुकुल वासनिक, दीपेंद्र हुड्डा, सचिन पायलट आदि उनके साथ खड़े हो गये। हालांकि, शशि थरूर ग्रुप-23 के सदस्य रहे हैं परंतु, आजाद के अलग होने के बाद ग्रुप-23 सुस्त पड़ गया। हालात यहां तक हो गये कि थरूर के समर्थन में इस ग्रुप की ओर से एक भी आवाज सुनाई नहीं दे रहा। कयास यह भी लगाये जा रहे हैं कि शशि थरूर का मैदान में उतरना भी रणनीति का ही हिस्सा है। कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव स्वतंत्रता के बंधन से मुक्त नहीं है।

गौरतलब है कि चुनाव लड़ रहे दोनों नेता दक्षिण भारत से हैं। शशि थरूर का केरल से जबकि मल्लिकार्जुन खड़गे का कर्नाटक से नाता है। और फिलहाल कांग्रेस का जो भी कुछ है, और आगे जो भी उम्मीद है वह दक्षिण भारत से ही है।

साफतौर पर, कांग्रेस अध्यक्ष पद ‘फिक्स चुनाव’ में अब कौन कुर्सी संभालेगा, इसमें कोई शक नहीं रह गया है। देखना केवल यह है कि जिस प्रकार शशि थरूर ने घोषणा पत्र जारी कर बदलाव का विचार प्रकट किया है, आगे कुछ बोलकर थोड़ा-बहुत रोमांच बनाये रखने का प्रयास करेंगे या फिर अपना मुंह बंद रख यथास्थिति को स्वीकारेंगे।