विभिन्न विचारों-नीतियों व मिज़ाज़ से सराबोर एकजुट विपक्ष के नेता शहबाज शरीफ ने कुर्सी संभालने से पहले ही कश्मीर का राग छेड़ दिया है। इस हाल में तो भारत के लिए इमरान सरकार और आने वाली सरकार में कोई फर्क नहीं है। कश्मीर को लेकर मोदी सरकार ने एक लंबा रास्ता तय कर दिया है …’आतंकवाद व संबंध’ साथ-साथ नहीं चलेंगे।

डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।
पाकिस्तान में इमरान के जाने और नयी सरकार के आने के बीच कश्मीर राग फिर छेड़ा गया। यह ‘राग’ ऐसे पाकिस्तान की है जो, कंगाली व बदहाली के कगार पर खड़ा है, महंगाई-बेराजगारी और भारी कर्ज के बोझ तले दबा है। इस हाल में भारत यह समझने में भूल नहीं कर सकता कि हमारे संदर्भ में पाकिस्तान में कुछ बदला है। कई पार्टियों के समर्थन से बनने वाली सरकार की मजबूरियां और संकट भी अलग किस्म का है।
सोमवार को यानी 11 अप्रैल 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच वर्चुअल बैठक हो रही है। यह बैठक कई मायनों में समस्याग्रस्त वैश्विक राजनीतिक-आर्थिक हालातों के बीच हो रहा है जो अति महत्वपूर्ण है। रुस-उक्रेन के बीच जारी युद्ध की समस्या, युद्ध के मद्देनज़र यूरोपीय संघ के देशों में रूस के साथ आर्सेथिक संबंधों को लेकर उलझन, चीन-ताइवान के साथ उत्तरी कोरिया के हाल के बयान के साथ ही पाकिस्तान में राजनीतिक संकट के लिए खुलेआम अमेरिका की संलिप्तता का आरोप आदि।
बहरहाल, पाकिस्तान में सम्मिलित विपक्ष के नेता रहे शहबाज शरीफ के पीएम बनने का रास्ता लगभग साफ हो गया है।अविश्वास प्रस्ताव जीतने के बाद से शहबाज शरीफ लगातार अपनी बातें जनता के बीच रख रहे हैं। इसी दौरान सरकार बनाने से पहले उन्होंने एकबार फिर से कश्मीर का राग अलापा है। उनके कश्मीर प्रलाप का घरेलू राजनीति में चाहे जो भी घारणा रही हो, भारत इस पर सतर्क है और इस मद्देनज़र पाकिस्तान को लेकर भारत की वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक व सामरिक नीति (स्टैंड) में बदलाव की गुंजाइश बहुत कम ही है।
यदि, पाकिस्तान में नयी सरकार में सबकुछ ठीक रहा तो भी इस सरकार के पास एक-डेढ़ साल का ही समय है। जाहिरतौर पर, शहबाज सरकार अपनी नीतियों की तैयारी चुनाव के मद्देनज़र ही करेगी। फिलहाल, पाकिस्तान के आर्थिक हालात को ठीक करना, महंगाई को काबू में करना और जीडीपी संभालने के साथ ही कर्जे के ब्याज भुगतान को पूरा करने को नये कर्ज प्राप्त करना नयी सरकार की चुनौतियां है। इन सभी समस्याओं पर पेबंद लगाकर चुनाव में उतरने की कोशिश में शहबाज सरकार प्रयास करेगी। उपरोक्त हालात में बदलाव भारत के साथ संबंधों में सुधार के बिना संभव नहीं है। शहबाज शरीफ ने प्रधानमंत्री बनने से पहले कश्मीर मसले का हल के बिना शांति संभव नहीं है का राग छेड़ा तो उधऱ, समर्थक पीपीपी के बिलावल भुट्टो (जिन्हें विदेश मंत्री की कुर्सी मिलने की चर्चा है) के पुराने पाकिस्तान में स्वागत का नारा बहुत कुछ कहता है। वे समझते हैं कि मोदी सरकार से पहले भारत के सदर्भ में जो नीति (आतंकवाद यानी कश्मीर राग और आर्थिक-व्यापारिक ताल्लुकात दोनों साथ-साथ) चलते रहे हैं, वैसा ही कुछ चलाने की नीति बनाई जाय।
शहबाज शरीफ यह समझ लें कि उनकी सरकार पुराना पाकिस्तान (नीति) के स्वागत को आतूर है तो तो यह मोदी राज का नया भारत है। आतंकवाद (कश्मीर राग) और आर्थिक-व्यापारिक संबंध दोनों साथ-साथ नहीं चलते। अपनी ‘एड़ी’ रगड़ते रह गये इमरान खान पर मोदी सरकार ने कभी उनका नाम लेना भी गवारा नहीं समझा। यदि, उनके राज में सरकार समर्थित कश्मीर में समस्याएं बढ़ी, तो फिर सीधी कार्रवाई की मार सहने को तैयार रहें। कश्मीर को भूलने पीओके पर सोचने में ही पाकिस्तान की भलाई है…नहीं तो चाहे जितनी मर्जी वे एड़ी रगड़े…चश्मा (पानी) नहीं निकलेगा।