नीतीश के ‘स्वयं’ के ‘समापन संकेत’ पर फिलहाल राजद को ‘भरोसा’ नहीं !

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नीतीश कुमार ने तेजस्वी के कंधे पर हाथ रखकर जो कुछ कहा, वह ‘दिल’ से कहा या राजनीति के वशीभूत, इसका विश्लेषण कर रहे   

मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।

लोकसभा चुनाव की बाबत ‘राजनीतिक संदर्भ समीकरण’ की सुस्ती को देखते हुए मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एक बयान ने बिहार की सियासत में हिलोरें पैदा करने की कोशिश की है। शनिवार को नीतीश कुमार ने पत्रकारों के सामने तेजस्वी यादव के कंधे पर हाथ रख जो कुछ कहा, उस बयान ने अंदरखाने जदयू नेताओं को भी चौकन्ना कर दिया है। अन्य कई मामलों के अलावा नीतीश कुमार @pm andidate (नीतीश कुमार प्रधानमंत्री मैटेरियल) की ‘धुंए’ ने सबसे पहले नीतीश कुमार को बीजेपी से अलग होने को आधार दिया। परंतु, जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा, वैसे-वैसे ‘धुंआ’ भी बुझता दिख रहा है। इस संदर्भ में ही नीतीश कुमार के बयान को देखने की आवश्यकता है। यह कयास और चर्चा कि, वे (नीतीश कुमार) अब बढ़ती उम्र और राजनीतिक रस्सा-कस्सी के बीच ‘भूलने’ की बीमारी से ग्रस्त होने लगे हैं। कई बार मौके पर देखा गया कि पत्रकारों के सवाल पर वे अपने आसपास के लोगों से मुखातिब हो उस बारे में पूछने लगते हैं। घटनाएं व तथ्य भूलते जा रहे हैं। बावजूद इसके, पिछले कई दिनों से नीतीश कुमार लगातार मीडियाकर्मियों के बीच कुछ न कुछ बीजेपी के खिलाफ बोल रहे हैं, मोदी को सत्ता से उखाड़-फेंकने का दंभ भर रहे हैं।

उधर, आम चुनाव को लेकर इंडी गठबंधन में फिलहाल चुप्पी है। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ आदि विस चुनाव को लेकर कांग्रेस खुद में उलझी हुई है। ऐसे में नीतीश कुमार ने शनिवार को बड़ा बयान दिया, जिससे यह कयास लगाये जा रहे हैं कि वे उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को बिहार की ‘कमान’ सौंपने जा रहे हैं। संभव है यह ‘जातिगत जनगणना’ रिपोर्ट के आलोक में एक सोची-समझी राजनीतिक रणनीति हो। परंतु, इससे सवाल पैदा होता है कि क्या नीतीश कुमार ने अब पूरी तरह से ‘जदयू को समेटने’ का मन बना लिया है? इससे पहले वे कहते रहे हैं कि बिहार 2025 विधानसभा चुनाव में महागठबंधन का नेतृत्व तेजस्वी यादव करेंगे। हालांकि, उनके उस बयान ने जदयू में ऐसी खलबली मचाई थी कि संसदीय बोर्ड प्रमुख उपेन्द्र कुशवाहा ने जदयू से इस्तीफा दे दिया और आरोप लगाया कि नीतीश कुमार ने राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के साथ पार्टी (जदयू) का ‘सौदा’ कर लिया है।

और …अब नीतीश कुमार का डिप्टी सीएम तेजस्वी के कंधे पर हाथ रख यह कहना कि “यह बच्चा मेरे लिए सब कुछ है।” इस इशारे ने जदयू के नेताओं में खलबली पैदा कर दी है। एक ऐसी पार्टी जो बिहार में पिछले करीब दो दशक से सत्ता का नेतृत्व कर रही हो, वह एक ऐसी पार्टी में विलय हो जाय, जो फिलहाल सीटों व वोटों की गणित में उससे आगे हो, उस पार्टी के नेताओं में छटपटाहट तो रहेगी। राजनीति में नेता प्रतिकूल माहौल में कुछ समय के लिए हासिये पर चला जाय, यह बर्दाश्त के काबिल है परंतु, वह चुनावी राजनीति से दूर हो जाय या कर दिया जाए, उसके लिए ऐसी स्थिति मरण जैसी है। नीतीश कुमार का संकेत जदयू के बहुसंख्यक नेताओं में भय पैदा करता है और यह सोचने को मजबूर करता है कि अब पार्टी उसके बारे में निर्णय लेने में सक्षम नहीं है। यानी ‘घोड़े’ का लगाम कहीं और है।

…और एक महत्वपूर्ण राजनीतिक संकेत यह कि नीतीश के बयान के बाद भी ‘राजद’ नेताओं में उम्मीद के विपरित शांति है। जो राजद गाहे-बेगाहे कुर्सी खाली करने को लेकर दबाव बनाती रही है, यह बता रहा है कि वहां भी अभी ‘संशय’ की स्थिति है। संभव है, नीतीश का लोकसभा चुनाव बाद कुर्सी सौंपने का संकेत जदयू को एकजुट रखने को लेकर लोकसभा सीटों में लाभ पाने की जुगत भी हो सकता है। ‘नीतीश-उवाच’ पर खासकर लालू यादव ‘छाछ फूंक-फूंककर पीने’ की स्थिति में हैं। …यानी, नीतीश के ‘पेट में दांत’ अभी मौजूद है।