शौर्य व साहस ही ‘आत्मविश्वास’ का नाम, …सनातन विरोधियों को हर स्तर पर दीजिए जवाब

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“जीवन में सफलता श्रद्धा, विश्वास के आधार पर ही प्राप्त होता है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में तत्काल परिणाम प्राप्त नहीं होते, उसके लिए अनवरत प्रयास करना पड़ता है। प्रयास के लिए सफलता का विश्वास रखते हुए आगे बढ़ना होता है….और हमारा आत्मविश्वास (सनातन) यह बताता है कि अधर्म-अनीति और भ्रम फैलाने के प्रयास का मुंहतोड़ जवाब ऐन मौके पर, हर मौके पर और हर कदम पर देना चाहिए …और इसके लिए साहस और शौर्य को अपने चिंतन व कार्य-प्रभाव में लाना चाहिए जिससे कि आत्मविश्वास (सनातन) को प्रबलता मिले। …जिसने भी और जो भी सनातन को समाप्त करने, नष्ट करने, उसके विरुद्ध भ्रम फैलाने का काम करता है या कर रहे हैं, उनके खिलाफ उठ खड़े होने की आश्यकता है।
श्रीकृष्णजन्ममाष्टमी के पवित्र अवसर पर भगवान श्रीकृष्ण के ज्ञान व आदेश को हमें याद रखना है।”

डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया.

आज श्रीकृष्णजन्माष्टमी है और आज हम व्रत-उपवास, पूजा-पाठ कर अध्यात्मिक तौर पर शरीर व आत्मचिंतन-आत्मविश्वास को शुद्धता के साथ प्राप्त करने का प्रयास करते हैं जिससे कि हमारा समग्र चिंतन, धर्म-संस्कृति व संस्कार अविनाशी हो, जीवन की शुद्धता को संबल दे, सामाजिक-सांस्कृतिक व धार्मिक एकजुटता को संबलता प्रदान करे। इस पुनित मौके पर हमें याद रखना है कि अशुद्ध आचरण, अपने धर्म व समाज के प्रति भ्रम फैलने की कुचेष्ठा और इस आधार पर अलगाव को बढ़ावा देने के कुत्सित प्रयास का दमन करना है। तमिलनाडु के जिस भ्रष्ट-विलग एक पंथ के स्वेक्छाचारी ने सनातन के प्रति विष-वमन किया है, उसका नित प्रतिकार हो, इस कुसाहस के प्रति उसे दम लेने का एक मौका नहीं मिले …यह प्रण लेना है।

परिवार में स्वजनों के प्रति आत्मीय होने के मूल में पारस्परिक स्नेह-श्रद्धा ही वह कड़ी है जिससे सभी एकसूत्र में बंधे रहते हैं। यह अपने प्रति और और अपने-सबके प्रति स्नेह और त्याग के मत को बनाये रखता है। यदि यह कड़ी टूट जाय तो परिवार व समाज बिखर जाता है। ऐसे में जब साहस, श्रद्धा-विश्वास के बिना भौतिक जीवन में स्थिरता नहीं आ सकती है तो फिर अध्यात्म, जिसका श्रद्धा-विश्वास प्राण है, वह कैसे अपनी गति बनाये रख सकता है? इसीलिए श्रीगीता के 17/3 में कहा गया है- श्रद्धामयों अयं पुरुषों यो यच्छद्ध स एव स:। यानी जैसी श्रद्धा होगी वैसा ही आप होंगे या रहेंगे। अर्थात् गलत के प्रति चुप रहेंगे, उसका प्रतिकार नहीं करेंगे तो वैसी ही आपमें श्रद्धा भी भाव ग्रहण कर लेगी और वह फलदायी नहीं होगा।

इसीलिए दुष्ट का जो सरेआम सनातन के प्रति घृणता को फैलाता है और उसपर दंभ भरता है, उसका प्रतिकार जरूरी है।