समृद्धि और सहिष्णुता ही भारतवर्ष के लिए अभिशाप बन गया : मो. आरिफ खान

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नई दिल्ली के इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित समारोह में केरल के राज्यपाल मो. आरिफ खान को काशी (वाराणसी) की शोध छात्रा सुश्री शालिनी मिश्रा द्वारा हस्तनिर्मित 'श्रीराम दरबार पोट्रेट' (पेंटिंग) की फोटोप्रति भेंट दे सम्मानित करते आयोजकगण।

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित व्याख्यान में केरल के राज्यपाल व विद्वान मोहम्मद आरिफ खान ने भारतीय सनातन परंपरा, धर्म-दर्शन और ‘वर्तमान भारत’ को समग्रता में व्याख्यायित किया।

दीपावली और ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ के उपलक्ष्य में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ के तीन दिवसीय आयोजन में विभिन्न भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया   

Manoj Kr. Tiwary for report4india/new delhi.

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में आयोजित ‘वर्तमान भारत’ पर विचार गोष्ठी में अपने विचार प्रकट करते केरल के राज्यपाल महामहिम मोहम्मद आरिफ़ खान।

ख्यातिलब्ध विद्वान व प्रखर व्यक्तित्व के धनी केरल के राज्यपाल मोहम्मद आरिफ खान ने एकबार फिर अपनी विद्वता और इतिहास बोध से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। मौका था, आजादी के अमृत महोत्सव और दीपावली के उपल्क्ष्य में हिन्दुस्थान समाचार द्वारा आयोजित ‘पंच प्रण’ के तहत ‘विकसित भारत’ विषय पर उनका संबोधन। विद्वान महामहिम राज्यपाल मो. आरिफ खान ने अपने संबोधन में कहा, एक देश के रूप में भारत की अलौकिक सुंदरता, समृद्धी और उसकी सहिष्णुता समग्र रूप में ‘धर्म-ध्वनि मंत्र’ में समाहित रही है। यह जानने-सुनने में किसी को भी अविस्मरणीय लग जाय कि एक ‘भागौलिक-प्राकृतिक’ रूप से आच्छादित भूमि के हिस्से की सुंदरता के किस्से-कहानियां उसके अपने निवासियों के मन-मस्तिष्क में ऐसे घर कर जाय कि वे उसे जीवित भारत माता के रूप में स्थापित कर दे। दूसरा पक्ष यह कि एक दौर में भारत की यही सुंदरता, समृद्धि-सहिष्णुता उसपर विपत्तियों के पहाड़ बनकर टूट जाय। आक्रांताओं का ध्यान इस ओर खींचा।

उन्होंने कहा, ईसा पूर्व छठी शताब्दी से लेकर छठी शताब्दी तक भारत की समृद्धि के जलवे पूरी दुनिया में थी। जबकि, सातवीं शताब्दी में अरब साम्राज्य का निर्माण हुआ तो वह किसी समग्रता के सिद्धांत पर आधारित नहीं था। इसीलिए पूरा साम्राज्य दस साल में ही नष्ट हो गया। बाद में आक्रांतओं ने लूट की नियत से भारत को अपना लक्ष्य बनाया। क्योंकि, दुनिया भर की धन-संपत्ति का स्रोत भारत था। शेष दुनिया यानी, यूरोप में कुछ था ही नहीं, इसलिए आक्रांता-लुटेरे उधर गये ही नहीं और न ही उनकी दिलचस्पी रही।

मोहम्मद आरिफ खान ने कहा, कुछ सुंदर पक्षियों की सुंदरता ही उनका अभिशाप बन जाता है और भारत के साथ यही हुआ। सवाल उठा कि भारत विकसित था तो फिर पीछे क्यों गया? गुलाम क्यों हुआ? हमारे धर्म-दर्शन में कर्म का सिद्धांत बहुत प्रबल है और कर्म के परिणाम से भगवान भी नहीं बचते। रावण और विभीषण भी भक्त थे लेकिन दोनों निगेटिव और पॉजिटिव भक्त थे। सिर्फ दूसरों पर दोष डालने से काम नहीं बनता। बुनियादी सबक है की जबतक हमारे अंदर कमजोरी नहीं आती, तब तक हमे कोई परास्त नहीं कर सकता। मैं आजीवन विद्यार्थी रहना चाहता हूं। निरंतर ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करना ही हमारा दर्शन है। ज्ञान तप है, स्वाध्याय है उसे दूसरों के साथ बांटो। जब बाहर से लोग आए तो उन्होंने हमारे आत्मविश्वास पर हमला किया ताकि उनका राज्य स्थाई हो सके।

पैगम्बर ने कहा भारत भूमि से शीतल हवा के झोंके आते महसूस हो रहा है। यह हवा ज्ञान की शीतल है। जिस रसूल को में मानता हूं वह ज्ञान के शीतल हवा को महसूस करते थे तो मैं उस ज्ञान को क्यों ना मानू? जब विदेश में लोग गुफा में रहते थे और भारत में ग्रंथ लिखे जा रहे थे, तो वे लोग हमे सिविलाइज्ड करने आए। सातवीं-आठवीं-दसवीं शताब्दी में हर अरब लेखक ने पहले चैप्टर में बड़ा हिस्सा भारत के बारे में लिखा। इब्ने तब्सूर्म, इब्ने खरदूम आदि।

उन्होंने कहा, दुनिया में पांच सभ्यता है- ईरान अपने वैभव के लिए जाना जाता है। चीनी अपनी कौशल के लिए रोमन सुंदरता के लिए तर्क बहादुरी के लिए भारत अकेला देश है जो अपने ज्ञान और प्रज्ञा के संवर्धन के लिए जाना है। जब तक यह संवर्धन होता रहा भारत सोने की चिड़िया थी।
आगे एक कैतुक यह भी रहा है कि, यदि हम ज्ञान के केंद्र थे तो इतिहास में हमारी दुर्दर्शा क्यों हुई? हम मां सरस्वती के उपासक थे जिसका अर्थ फूल चढ़ा देना नहीं है बल्कि, ज्ञान अर्जित करना और उसे शेयर करना है। हमारी संस्कृति है, जिसे ब्रह्म की प्राप्ति हो जाती है, वह साझा करता है। कपिल संहिता के अनुसार, हर प्राणी का सहयोग करना, जरूरत पूरी करना ही ब्रह्म जागृति का भाव है।

हमारी दुर्गति इसलिए हुई कि हम सरस्वती के आराधक से खलनायक बन गए। हम अपने ज्ञान को साझा नहीं करते। गोस्वामी तुलसी दास ने कहा है, जिस दिन हमने ज्ञान को साझा करना बंद कर दिया, उस दिन पतन के वारंट पर दस्तखत कर दिया। हमे ज्ञान की परंपरा को मजबूती के साथ आगे बढ़ाना होगा। भारत का नाम भारत क्यों पड़ा, इसके तीन उदाहरण है और चौथा है भारत के लोग उनके वंशज है जो अग्नि की उपासक है। अग्नि का अर्थ ज्ञान और तेज है। भारत ने विषमतम स्थितियों में भी अपने ज्ञान, संस्कार-संस्कृति को बचा कर रखा है। जब दुनिया के तमाम देश मिट गए, रोम की वर्तमान पीढ़ी को अपने इतिहास की जानकारी नहीं है, उनका ज्ञान विलुप्त हो गया लेकिन भारत में ऐसा नहीं हुआ। इसे आगे बढ़ाना होगा पूरी मजबूती से आगे बढ़ाना होगा। वर्तमान भारत के सामने यही मुख्य चुनौतियां हैं।

तीन दिवसीय इस कार्यक्रम में दूसरे दिन संध्या को सात हजार दीपों को प्रज्वलित कर शहीदों को श्रद्धांजलि दी गई। इसके साथ ही सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया।