जीवन में आध्यात्म मार्ग का अनुसरण ही मुक्ति का रास्ता है। ज्ञानेंद्रियाँ, कर्मेन्द्रियाँ, प्राण और अंतःकरण का द्वंद जीवन भर चलता रहता है। आध्यात्म ही इस द्वंद को समाप्त कर शांति और मोक्ष का रास्ता बताता है।
← डॉ. कृष्णदत्त त्रिपाठी (श्रीकृष्ण ज्योतिष केंद्र के अधिष्ठाता)
प्रस्तुती- रिपोर्ट4इंडिया/धर्म-संस्कृति डेस्क।
गांव का बुद्धिमान व्यक्ति जिसके पास 19 ऊंट थे, मृत्यु हो गई। उसके निधन के बाद उसकी लिखी वसीयत सामने आई जिसमें लिखा था कि 19 ऊंटों में से आधा बेटे को, सब ऊंटों के एक चौथाई बेटी को तथा सभी ऊँटों का पांचवां हिस्सा मेरे नौकर को दे दिए जाएं।
बंटवारे को लेकर गांव के सभी लोग चक्कर में पड़ गए कि वसीयत के अनुसार 19 ऊंटों में से कैसे विभाजन किया जाए। 19 का आधा यानी साढ़े नौ ऊँट कैसे दिया जाए। फिर 19 का एक चौथाई और पांचवा हिस्सा अलग-अलग कैसे किया जाए।
इस प्रश्न को लेकर सभी गांववासी उलझन में थे। फिर किसी के कहने पर पड़ोस के गांव से एक बुद्धिमान व्यक्ति को बुलाया गया। वह बुद्धिमान समस्या को जान अपने ऊंट पर चढ़कर मौके पर आया। समस्या सुनने के बाद बोला कि इन 19 ऊंटों में मेरा एक भी ऊंट मिला दिया जाए और बांटा जाए।
उसके इस निर्णय पर सबने आश्चर्य व्यक्त किया। फिर उसके कहने पर सब बांटने को राजी हुए।
अब मौके पर 19+1=20 ऊंट सामने थे। उसका आधा यानी 20 का 10 ऊंट उसके बेटे को दिए गए। अब, 20 ऊंटों का चौथाई यानी 5 ऊंट बेटी को दे दिए। अब 20 ऊंटों का पांचवां हिस्सा यानी 4 ऊंट नौकर को दे दिए। इस प्रकार से 19 ऊंटों का बंटवारा हो गया। बचा हुआ अपना एक ऊंट वह पड़ोसी बुद्धिमान व्यक्ति लेकर चला गया।
ठीक, इसी प्रकार से हमारे जीवन में 5 ज्ञानेंद्रियाँ, 5 कर्मेन्द्रियाँ, 5 प्राण, और 4 अंतःकरण (मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार) कुल 19 ऊँट होते हैं। सारा जीवन मनुष्य इन्हीं के बंटवारे में उलझा रहता है। लेकिन जब तक उसमें आत्मा रूपी ऊंट को मिलाया नहीं जाता तबतक व्यक्ति आध्यात्मिक बुद्धिमत्ता नहीं प्राप्त कर सकता। आध्यात्मिक बुद्धमता के बिना जीवन में सुख, शांति, संतोष व आनन्द की प्राप्ति नहीं हो सकती। अतः मनुष्य का प्रयत्न आध्यात्मिक बुद्धमता प्राप्त करने की ओर होना चाहिए।
February 22, 2019
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