“ऊर्जा केंद्र में शिव व शक्ति। सभी शिव व शक्ति के ही प्रतिनिधि। सार्वभौमिक चेतना में शिव व शक्ति काल और स्थान का निरुपण करते हैं। मन व प्राण शिवशक्ति के प्रतिरुप। एक निश्चित बिंदु व समय पर शिव-शक्ति के एकाकार से ही जन्म या सृजन संभव है। ब्रह्मांड का निर्माण व गति शिव-शक्ति यानी ऊर्जा से ही।”
डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।
चंद्रमा पर चंद्रयान-3 के उतरने के स्थान (प्वाइंट) को पीएम मोदी द्वारा शिवशक्ति (शिव व शक्ति) का नामकरण सर्वथा उचित व अर्थपूर्ण है। शिव व शक्ति के संयुक्तिकरण का ज्ञान (खोज) ही निर्माण है। सर्वथा नये रूपों में अनुसंधान यानी खोज शिव शक्ति के बिना संभव नहीं है।
ब्रह्मांड में शक्ति यानी ऊर्जा के दो महत्वपूर्ण केंद्र माने गये हैं- शिव और शक्ति। इस ब्रह्मांड में शिव और शक्ति प्रत्येक जीव में विभिन्न रूपों में क्रियाशील रहते हैं। स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के प्रतिनिधि हैं। सार्वभौमिक चेतना में शिव और शक्ति काल व स्थान का निरुपण करते हैं अर्थात् आध्यात्मिक जीवन में मन तथा प्राण शिव-शक्ति के प्रतिरूप हैं। हठयोग में शिव व शक्ति को ‘इड़ा’ व ‘पिंगला’ के रूप में उल्लेखित किया गया है। सनातन आध्यात्म जीवन में ये दोनों शक्तियां ऊर्जा के दो केंद्र हैं जो विपरित हैं। आश्चर्यप्रद है कि ये दोनों शक्तियां सामान्यत: कभी एक नहीं होती। परंतु, निर्माण (सृजन या रचना) के समय यह निश्चित बिंदु पर एक हो जातीं हैं। उनका आपस में जब विलय होता है तब पदार्थ में विस्फोट हो जाता है। यही, काल व स्थान में धनात्मक व ऋणात्मक शक्ति के रूप में प्रतिबिंबित होती है। इसीलिए शिव में आधा शिव व आधा शक्ति हैं, जिन्हें हम अर्द्धनारीश्वर के रूप में देखते हैं। शिव व शक्ति एक-दूसरे से संयुक्त हैं। विकास के एक अन्य स्तर में जहां शक्ति सर्वोपरि है व शिव उनके अनुयायी हैं और यह प्रत्येक व्यक्ति के अंदर सहज रूप में विद्यमान रहते हैं।
यानी विकास तथा जाग्रति के विभिन्न स्तरों पर शिव व शक्ति के विभिन्न रूपों का दर्शन होता है। एक स्थिति में शक्ति शिष्या हैं और शिव गुरु हैं। दूसरी स्थिति में दोनों में कोई अंतर नहीं है और वे एक-दूसरे से संयुक्त हैं। विकास के एक अन्य स्तर पर शक्ति सर्वोपरि हैं और शिव उनके अनुयायी। …और यह सभी व्यक्तियों के अंदर (मन और प्राण का) सहज रूप में विद्यमान रहने वाली जाग्रत अवस्थाओं की दार्शनिक व्याख्या है। …इस तरह ‘मन और प्राण’ का मिलन ही आज्ञाचक्र से मिलन है ….भारतीय शास्त्रीय व ज्योतिषीय पद्धति में चंद्रमा मन का स्वामी है और पृथ्वी प्राण यानी जीवन के …दोनों के मिलन बिन्दू (प्वाइंट) का नामकरण भला शिव-शक्ति से बेहतर और क्या हो सकता है।