“संजय गांधी की मौत के बाद पंजाबी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली मेनका के ‘गांधी परिवार’ से अलग हो जाने के बाद वरूण गांधी ने अपनी मां के नक्शे कदम पर ही राजनीति शुरू की। सांसद बनने और शादी के बाद लंबे समय से ‘चैन की बंशी’ बजाने वाले वरूण गांधी कांग्रेस की पतली राजनीतिक हालत और उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के बीच ‘करवट’ बदलने के मुड में हैं। लखीमपुर खीरी घटना पर वे जिस तरह निशाना साध रहे हैं वह स्वयं ही उनकी भविष्य की राजनीति का ईशारा है।”
डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।
वरूण गांधी के पिता स्व. संजय गांधी की राजनीतिक हैसियत स्व. इंदिरा गांधी के साथ ठीक वैसे ही थी जैसा आज सोनिया गांधी व राहुल गांधी के बीच है। परंतु, इंदिरा गांधी के एकमुश्त सत्ताधिकार के उस दौर में संजय गांधी राजनीति के गरम दल के खिलाड़ी बने। परंतु, संजय गांधी की मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी से मेनका गांधी का कभी नहीं बना। वह इंदिरा से अलग रहने लगीं और आगे ‘गांधी परिवार’ से बगावत कर ‘संजय विचार मंच’ बनाकर राजनीति में शुरुआत की। राजीव गांधी के निधन के बाद भी मेनका गांधी का सोनिया गांधी परिवार से नहीं बना। हालांकि, जब वरूण छोटे थे तो वे यदा-कदा प्रियंका गांधी के साथ देखे जाते थे।
1990 के बाद बीजेपी का केंद्रीय राजनीति में दबदबा बढ़ा और कांग्रेस कमजोर होती गई तो मेनका गांधी ने अपनी राजनीतिक सफर बीजेपी के साथ तय किया। 2004 में कांग्रेस नीत केंद्रीय सरकार सत्ता में आई और 10 वर्षों तक राज किया परंतु, वरूण गांधी का सोनिया या प्रियंका ने कोई सुध नहीं ली। लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र 7 मार्च 2009 को पीलीभीत संसदीय क्षेत्र में एक चुनावी सभा वरुण गांधी ने कहा था, “अगर कोई हिंदुओं की तरफ उंगली उठाएगा या समझेगा कि हिंदू कमजोर हैं और उनका कोई नेता नहीं हैं, अगर कोई सोचता है कि ये नेता वोटों के लिए हमारे जूते चाटेंगे तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूं कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा।” इस बयान पर बवाल मचा और तत्कालीन उप्र की सीएम मायावती ने मुसलिम वोटों को ध्यान में रखते हुए रासुका लगाकर वरूण को जेल में डाल दिया। उसके बाद तो कांग्रेस ने वरूण गांधी से और दूरी बना ली थी। वरूण के साथ प्रियंका ने भी बात करना वंद कर दिया था। कांग्रेस को भी मुसलमान वोटों की फ्रिक थी और वरूण का बयान मुसलमनाों के खिलाफ माना गया।
अब, वरूण गांधी की राजनीति करवट ले रही है। वे इधर लगातार बीजेपी के खिलाफ बोलते दिख रहे हैं। लखीमपुर खीरी की घटना को वे हिंदू बनाम सिख की लड़ाई बताने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने ट्वीटर पर लिखा है लखीमपुर खीरी को हिन्दू बनाम सिख बनाने की कोशिश की जा रही है। यह न केवल एक अनैतिक और झूठा आख्यान है, इन दोषों की रेखाएँ बनाना और उन घावों को फिर से खोलना खतरनाक है जो एक पीढ़ी को ठीक करने में लगे हैं। हमें राष्ट्रीय एकता से ऊपर राजनीतिक लाभ नहीं रखना चाहिए। यानी परोक्ष रूप से वरूण गांधी यह कह रहे हैं कि कोई भी लखीमपुर खीरी में लाठी से पीट-पीट कर मारे गये हिन्दुओं (ब्राह्मणों) की बात की तो वे इसे सिख बनाम हिन्दू की नज़र से देखेंगे। वे यह भी कह रहे हैं कि ‘भिडरावाले के चित्रवाला टी-शर्ट पहनने वाले खालिस्तान समर्थकों के बारे में भी कुछ नहीं किया जाय।
इस देश में हमेशा से हिन्दुओं का यह दुर्भाग्य रहा है कि वे मुसलमान मारे तो भी मुंह बंद रखें और खालिस्तानी मारे तो भी वे आवाज न निकालें। पश्चिम बंगाल में मारकाट कर भगाये जाएं तो भी बीजेपी के अलावा कहीं से कोई राजनीतिक आवाज न सुनाई दे। हिन्दुओं की यह ‘गति’ इसलिए है कि वह कांग्रेस, सपा-बसपा, राजद और वरूण जैसे नेताओं के पिछलग्गू बने घूमते हैं और उनसे कोई सवाल नहीं पूछता।