” जितने प्रश्न, समस्याएं हैं, उससे ज्यादा हमारे पास उत्तर व समाधान भी है और यही हजारों वर्षों की आर्यावर्त की अनवरत यात्रा रही है, जो समस्या व समाधान के बीच सेतुबंध बनाने के संकल्प को मजबूत बनाता है। हम समस्या समाधान की खोज में आगे बढ़ने से हिचकते हैं, तो शास्त्र पास होते हुए भी जीवन उलझता चला जाता है। भारतवर्ष की विशेषता यह है कि समस्या समाधान में हर युग में एक नचिकेता निकल पड़ता है। पुरातत्वविद और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अधिकारी पद्मश्री केके मोहम्मद चार दशक से कहते रहे हैं कि विवादित स्थल पर एक भव्य मंदिर था और हमें अब एक नया मंदिर बनाना चाहिए।”
डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।
नई दिल्ली। वेद-पुराण और शास्त्र सभी जीव व जगत में समस्याओं के समाधान में खोज, विकल्प और संकल्प को मूर्तरूप देते हैं। इसीलिए भारत समस्याओं और प्रश्नों से भरा हुआ है। साथ में यह भी कि जितने प्रश्न, समस्याएं हैं, उससे ज्यादा हमारे पास उत्तर और समाधान भी है। यही हजारों वर्षों की आर्यावर्त की अनवरत यात्रा रही है, जो समस्या व समाधान के बीच सेतुबंध बनाने के संकल्प को मजबूत बनाता है। परंतु, जैसे ही हम समस्या समाधान की खोज में आगे बढ़ने से हिचकते हैं, ‘शास्त्र’ पास होते हुए भी जीवन उलझता चला जाता है। भारतवर्ष की विशेषता यह है कि समस्या समाधान में हर युग में एक ‘नचिकेता’ निकल पड़ता है।
सदियों से चले आ रहे भारत के सबसे ज्वलंत समस्या का समाधान आज सर्वानुमति से हो गया है। लेकिन हर भारतीयों के जिय में एक सवाल हिलोरें मारता रहा है कि आखिरकार आजादी के बाद 72 साल क्यों लग गए ‘ईमाम-ए-हिन्द’ और मोहम्मद के राम को स्वीकारने में? सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से साफ हो गया है कि विवादित जमीन पर भव्य मंदिर था और उसपर विराजमान रामलला का ही हक है। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला तथ्यों व प्रमाणों पर आधिरित है। पुरातत्वविद् केके मोहम्मद के दिए सबूतों पर कि विवादित ढांचे के नीचे भव्य मंदिर था।
सुप्रीम कोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले का पुरातत्वविद और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व अधिकारी पद्मश्री केके मोहम्मद ने स्वागत किया है। उन्होंने कहा, एएसआई के दिए सबूतों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने माना कि विवादित स्थल पर पहले एक मंदिर था और हमें अब एक नया मंदिर बनाना चाहिए।
केके मोहम्मद उन दिनों की याद कर कहते हैं कि जब बाबरी मस्जिद से पहले विवादित स्थल पर मंदिर था, बताने पर उन्हें बहुत परेशान किया गया। यहां तक कि कई संगठनों की ओर से उन्हें धमकियां मिलीं। विभाग ने भी नौकरी से हटाने की बातें कही और उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया। जबकि उन्होंने एक पुरातत्वविद् होने के नाते खुदाई में जो साक्ष्य मिले, उस आधार पर बताया था कि विवादित ढ़ाचे के नीचे भव्य मंदिर के पुख्ता अवशेष हैं। फैसले को लेकर केके मोहम्मद ने कहा कि यह बिल्कुल वैसा ही फैसला है, जैसा हम सब चाहते थे।’ उन्होंने कहा, ‘यह जगह हिंदुओं के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है, जैसे मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना। यह जगह (अयोध्या) मोहम्मद साहब से जुड़ी हुई नहीं है और परंतु ‘मोहम्मद’ के राम का तो है ही।’
” खुदाई में हमें जो मिला और देखा वह यह था कि मस्जिद के 12 स्तंभ ऐसे थे, जो मंदिर के अवशेष थे।’ ये पिलर मंदिर के ही थे। 12वीं और 13वीं शताब्दी के अधिकतर मंदिरों के स्तंभों में आधार पूर्ण कलश के जैसा होता था जो कि हिंदू धर्म में समृद्धि का प्रतीक है। इसे अष्ट मंगल चिह्न के रूप में जाना जाता है जो कि आठ पवित्र चिह्नों में से एक है।”
अयोध्या केस की सुनवाई के दौरान मोहम्मद ने कहा था कि मुस्लिमों को अपनी इच्छा से अयोध्या की विवादित भूमि सौंप देनी चाहिए। 1976-77 विवादित बाबरी मस्जिद के नीचे मिले सबूतों से पता चलता है कि वहां एक बड़ा मंदिर था। उन्होंने बताया, उत्खनन के दौरान पूरा इलाका पुलिस के कब्जे में था, आम लोगों को जाने की इजाजत नहीं थी। खुदाई में हमें जो मिला और जो देखा वह यह था कि मस्जिद के 12 स्तंभ ऐसे थे, जो मंदिर के अवशेष थे।’ ये पिलर मंदिर के ही थे। 12वीं और 13वीं शताब्दी के अधिकतर मंदिरों के स्तंभों में आधार पूर्ण कलश के जैसा होता था जो कि हिंदू धर्म में समृद्धि का प्रतीक है। इसे अष्ट मंगल चिह्न के रूप में जाना जाता है जो आठ पवित्र चिह्नों में से एक है।’
यदि उस दौर में केंद्र और राज्य की सत्ता पर काबिज पार्टी और सरकारों ने तथ्यों के आधार पर समस्या के समाधान खोजते तो संभवत: मामला न तो इतना जटिल होता और न ही सुलझाने में इतना समय। कई पीढ़ियां अपने आराध्य भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर के दर्शन के बिना इस धरा से विदा हो गईं।
सबके बाद, यह सुप्रीम कोर्ट का फैसला बताता है कि समस्या के नये उत्तर खोजने का प्रयास कभी बंद नहीं होना चाहिए। पुरानी समस्याएं भी नया समाधान चाहती हैं, नयी परिस्थितियां नई चेतना को चुनौती देतीं हैं और जिद पकड़कर बैठना अवसर से चुक जाना है।