
विस्तृत सनातन-सांस्कृतिक प्रवाह की समझ ही ‘भारत-बोध’
आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज (दिल्ली विश्वविद्यालय) में “भारत-बोध: इतिहास,राजनीति और दर्शन” विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमीनार में पधारे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय विद्वतजनों ने ‘ज्ञान-गंगा’ प्रवाहित की
report4india bureau/ new delhi.
आत्मा राम सनातन धर्म कॉलेज की आईक्यूएसी सेल, इतिहास एवं हिन्दी विभाग तथा गांधी एवं आंबेडकर स्टडी सर्किल के संयुक्त तत्त्वावधान में, भारतबोध: इतिहास,राजनीति और दर्शन विषय पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार संपन्न हो गया।उद्घाटन सत्र में प्राचार्य प्रोफेसर ज्ञानतोष कुमार झा ने भारत की विशाल सांस्कृतिक-परंपरा विषय को रखा और उपरोक्त सेमिनार में विचार-विमर्श को पधारे विद्वान वक्ताओं का स्वागत व अभिनंदन किया। प्रोफेसर अनन्या वाजपेयी ने बीज वक्तव्य तौर पर महाभारत-रामायण तथा आधुनिक साहित्य संदर्भ में भारत की धारणा संबंधित तथ्यों को रखा और बताया कि भारत की विशाल सांस्कृतिक परम्परा इसकी गवाही देती है कि भारत की पहचान उदारता, करुणा, सह-अस्तित्व और नई रचनात्मक सोच के रूप में रही है। राजा होकर भी सामान्य मनुष्य के प्रति करुणाशील रहना और मानवता की रक्षा को अपने आदर्श से किसी भी स्थिति में नहीं झुकना, यह भारतीय मनुष्यता की सबसे बड़ी पहचान रही है। हमें उस भारत-बोध को आज और भी मजबूत करना है।

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति पद्मश्री प्रोफेसर दिनेश सिंह ने वैदिक रचनाओं और औपनिषदिक ग्रंथों के हवाले से भारत के उस बोध की तरफ इशारा किया, जिसके कारण कभी विश्व अर्थव्यवस्था में भारत का सबसे बड़ा योगदान हुआ करता था। उन्होंने कहा, ज्ञान और हुनर के इस समन्वित बोध का भारत आदिम पुरस्कर्ता रहा है। भारत के इसी बोध को गहराई से समझना है, जिसे नई शिक्षा नीति आगे बढ़ाने की बात करता है। उन्होंने गांधी को याद करते हुए सत्य और अहिंसा को भी भारत बोध के आदर्श पहलू के रूप में देखा।
इतिहासकार प्रोफेसर इनायत अली जैदी तथा प्रोफेसर आदित्य मुखर्जी ने मध्यकालीन भारतीय इतिहास के संदर्भ में भारत बोध की अवधारणा पर विस्तार से बात की। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसके सकारात्मक पहलुओं से सीख लेते हुए भारत के बदलते सांस्कृतिक बोध को समझने और मजबूत करने पर बल दिया, जिस पर जवाहर लाल नेहरू ने ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में विस्तार से लिखा और अपने समय में उसे विकसित करने का प्रयास किया। इतिहासकार आदित्य मुखर्जी ने कहा कि हमें पश्चिम की उस एकांगी राष्ट्रवादी दृष्टि से सावधान रहना है जो एकांगीपन और एकरूपीपने को तरजीह देता है। जो सिर्फ एक भाषा, एक धर्म और एक जाति की बात करता है। भारत जैसे बहुलवादी राष्ट्र के लिए यह किसी भी रूप में सिर्फ और सिर्फ विनाशकारी पथ हो सकता है।
सेमिनार में दूसरे दिन प्रोफेसर चंदन कुमार ने कहा कि भारत को भारत भाव के साथ पढ़ने के चिन्ह साहित्य और कलाओं में मौजूद हैं। वह समाज केंद्रित है, सत्ता केंद्रित नहीं। भारत नेकी का भाव है, गुडविल भाव है, वैष्णव भाव है, सनातन सातत्यता है, यही भारत बोध है। पांथिक गुलामी के लंबे अनुभव के बाद भी भारत का अपना संस्कृतिक बोध मरा नहीं। यह भारत भाव हिंदू भाव को एसर्ट करता है। भारत की पहचान हिन्दू सभ्यता से होगी। भारत भाव सर्वोत्तम की उत्तरजीविता का भाव नहीं है, सहभागिता का भाव है। उनका मानना है, आप इस भारत-बोध को तभी ठीक से समझ पाएंगे जब आप ये स्वीकार करेंगे कि भारत-बोध भारत का वृहत्तर संस्कृतिक बोध है, जिसे भारत के सभी धर्मों के कलाकर की भाषा, संस्कृति और कला के साथ संतों और सुधारकों ने निर्मित और विकसित किया है।
प्रोफेसर रविकांत ने सिनेमा के माध्यम से भारत बोध की यात्रा पर अपनी बात रखी। फिल्मों, फिल्मों में प्रयोग होने वाले गीत-संगीत के फॉर्म और कंटेंट के माध्यम से, उनके प्रसारण की नीति और तरीकों ने किस तरह का भारत-बोध बनाने की कोशिश की, इसे श्रोताओं तक पहुंचाने की का प्रयास किया। मनोवैज्ञानिक एवं दिल्ली विश्विद्यालय के पूर्व प्रोफेसर आनंद प्रकाश ने भारतीय मनुष्य और उसके मनोविज्ञान के विश्लेषण के माध्यम से भारत बोध को समझने समझाने का प्रयास किया और कहा कि जब तक आप भारतीय मनुष्य की अंतर्विरोधी चरित्र और मन को, उसकी आस्था और विश्वास,उसकी बदलती वैचारिक सारणीयों को ठीक से नहीं समझेंगे तब तक भारत बोध की वास्तविक और व्यवहारिक समझ नहीं बनेगी।
समापन सत्र में महात्मा गांधी हिंदी विश्वविधालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर गिरिश्वर मिश्र ने भारत की आध्यात्मिक चिंतन परंपरा को याद करते हुए भारतीय मनुष्य की उदारतावादी चरित्र एवं भागवत भाव को चिन्हित करते हुए उसकी विविधता पूर्ण पहचान को भारत बोध से जोड़कर देखने पर बल दिया। उन्होंने बल दिया कि भारत को देखने समझने और बरतने का कोई एकमात्र दृष्टि नहीं हो सकती। भारत के इस बहुलतावादी चरित्र और दृष्टि को समझना ही भारत बोध को जानना समझना है। इस तरह दो दिन का यह सेमीनार ने भारत बोध को अनेक तरह से देखने की दृष्टि पर बल दिया साथ ही अनेक नए प्रश्नों के संदर्भ उस पर नए सिरे से चिंतन के लिए प्रेरित किया।