जमाने को ‘विश्व गुरु’ का संदेश

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प्रधानमंत्री मोदी संयुक्त राष्ट्र संघ में।

वैश्विक लीडर मोदी बदलती दुनिया के नई उम्मीदों के केंद्र बने, तीसरी दुनिया को भारत से बड़ी अपेक्षा।

संयुक्त राष्ट्र आमसभा में पीएम मोदी का उद्बोधन, शांति-सहिष्णुता और समन्वित विकास से ही मानवता का उत्थान

डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।

नई दिल्‍ली। भारतीय प्रधानमंत्री मोदी के संयुक्त राष्ट्र संघ आमसभा में 17 मिनट के भाषण ने दुनिया को उम्मीदों और आशाओं से लबरेज़ कर दिया है। खासकर, तीसरी दुनिया जो 20वीं शताब्दी के बीच में अस्तित्व में आई, अपनी बड़ी आबादी को पालने, विकास के पथ पर आगे बढ़ने को लेकर लगातार प्रयारतरत है, उसे भारत ने मदद और विकास के रास्ते में सहयोगी बनने का संकल्प दोहराया है।

दुनिया के सबसे बड़े मंच पर भारत के वैश्विक नेतृत्व क्षमता और सोच को स्थापित करते हुए पीएम मोदी ने स्पष्ट किया कि हमारा देश भले ही 72 साल पहले परतंत्रता से बाहर आया है परंतु, उसकी सभ्यता-संस्कृति, सोच और कार्य-व्यवहार हजारों साल से मानवता का संदेश देती रही है। भाई चारा, सह-अस्तित्व और साथ मिलकर आगे बढ़ने की दृष्टि भारत की थाती है। महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी का शांति का संदेश आज भी प्रसांगिक हैं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को उनके बताए रास्ते पर ही चलने की जरूरत है।

हजारों वर्षों से जिसका धर्म व जीवन विशुद्ध रूप में प्रकृति के कण-कण से ओतप्रोत रहा है, वह देश भारत है। प्रकृति व पर्यावरण को बचाने, सुरक्षित रखने की अगुवाई हम कर रहे हैं, बिना इसकी चिंता किए कि 130 करोड़ की अपनी आबादी को संभालने के लिए हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है। पीएम मोदी ने दुनिया को बताया, जबसे वे केंद्रीय सत्ता में आए हैं, तब से उनकी सरकार ने अपने को पर्यावरण, स्व्च्छता आधारित समृद्धि प्राप्त करने की योजनाओं पर केंद्रीत किया है। स्वयं में बदलाव के साथ ही दुनिया को सह-राही बनाने की हमारी कोशिश जारी रहेगी। हमने स्वयं से वादा किया है कि दुनिया के कमजोर और विकास से वंचित देशों का हाथ पकड़कर उसे मुख्य धारा में लाएंगे। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना के उद्देश्य को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका सबसे ज्यादा है।        

आतंकवाद को लेकर एकबार फिर वैश्विक मंच से भारत ने दुनिया को सावधान किया। उनका स्पष्ट ईशारा था कि आंखें मुंद लेने से खतरा नहीं टल जाता बल्कि इसके खिलाफ सभी को एकजुट होने की जरूरत है। इसीलिए आज आतंकवाद के घिनौने रूप को लेकर हमारी आवाज़ में चिंता भी है और क्रांति का स्वर भी।