सोच-समझ के …यही तो कहते रहे हैं हम ….’जाना’ सबको है

0
688

बिनोद दुआ के निधन के बाद सोशल मीडिया पर उनके पूर्ववर्ती विचारों और समझ को लेकर लंबी बहस छिड़ गई है। ….वैसे बहस हो भी क्यों नहीं …वे बहसों के ही आगाज़ थे। 

report4india/ New Delhi.

पत्रकार विनोद दुआ का निधन हो गया। उनकी पुत्री मल्लिका ने इंस्टाग्राम पर पोस्ट कर उनके निधन की जानकारी दी है। इससे पहले भी उनके निधन की खबर उड़ी थी परंतु, मल्लिका ने उस समय खंडन किया था। विनोद दुआ के पार्थिव शरीर का कल अंतिम संस्कार होगा। विनोद दुआ वामपंथी विचारधारा से पूर्णत: ओतप्रोत और कांग्रेस के समर्थक पत्रकार माने जाते थे।

दक्षिणपंथी व राष्ट्रवादी विचारकों पर अपनी कठोर टिप्पणी के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने, अटल पूर्व प्रधानमंत्री  बिहारी वाजपेयी के निधन और सरकार द्वारा उनके सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों पर टिप्पणी की थी। उस समय विनोद दुआ ने कहा था, हमारे देश में मरने वाले की शान में कसीदे पढ़ने का अजब चलन है। कायदे से होना तो यह चाहिए कि मरने के बाद मरने वाले के पूरे जीवन की समीक्षा होनी चाहिए और फिर उसके बारे में कोई धारणा बनानी चाहिए। जबकि यही विनोद दुआ ने प्रधानमंत्री मोदी की राजीव गांधी पर की गई टिप्पणी पर कटाक्ष किया था और कहा था कि जो इस दुनिया से चला गया है उसपर किसी प्रकार की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए।

इसी बात को लेकर रोहित सरदाना जैसे पत्रकार के मौत पर खासकर मुसलिमों दवारा अभद्र टिप्पणी करने और विनोद दुआ जैसे पत्रकारों के मौन समर्थन पर अब हजारों लोगों ने उनके निधन पर जवाब देना शुरू कर दिया है। लोग ट्रोल कर रहे हैं कि यह मौत भी कर्मों का फल माना जाय। हालांकि, बड़ी संख्या में लोग ऐसे भी है जो कह रहे हैं कि निधन के बाद किसी को निशाना बनाना उचित नहीं है।