MP CONGRESS : वर्चस्व की लड़ाई से बात ‘बंटवारे’ और ‘इस्तीफे’ तक आई

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– बागी विधायकों के बेंगलुरु में डेरा डालने और उनके नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया के पीएम मोदी से मिलने की खबर से हरकत में आई कमलनाथ सरकार ने 20 मंत्रियों से इस्तीफा लिया

– सिंधिया के बीजेपी में जाने की खबर ने कांग्रेसी होली के रंग में भंग डाला। शिवराज सिंह चौहान दिल्ली से भोपाल लौट ताजा हालात को कांग्रेस का किया-धरा बताया।

डॉ. मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।

नई दिल्ली। 15 साल बाद मुश्किल से मध्य प्रदेश में मिली-जुली सरकार का नेतृत्व कमलनाथ के हाथ में सौंपने में सोनिया-प्रियंका गांधी की भूमिका अहम रही। सरकार बनाने के दौरान ही ज्योतिरादित्य सिंधिया का मान-मनौव्वल होता रहा। हालांकि, राहुल गांधी चाहते थे कि मप्र में ज्योतिरादित्य को कमान दी जाए परंतु, सोनिया व प्रियंका ने कमलनाथ व दिग्विजय सिंह के पक्ष में वीटो का इस्तेमाल कर सरकार बनवा दी। नतीजा यह हुआ कि बाद कमलनाथ सरकार बनने के करीब 14 माह बाद ही राज्य में कांग्रेस पार्टी बिखर गई और सिंधिया व 22 विधायकों ने सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।

मप्र में सरकार बनने के बाद लगातार सिंधिया को साइड लाइन लगाने का काम होता रहा। यह काम कमलनाथ और दिग्विजय सिंह करते रहे। सिंधिया की शिकायतों पर कांग्रेस नेतृत्व बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा था। लोकसभा चुनाव में राज्य में चारो खाने चित्त हो जाने के बाद कांग्रेस में गुटबाजी चरम पर दिखी। लगातार सिंधिया और कमलनाथ के बीच बयानबाजी तल्ख होते गए। अभी हाल में ही जब सिंधिया ने किसानों की कर्जमाफी को लेकर सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने की धमकी दी तो कमलनाथ ने सरेआम सिंधिया को लेकर कहा कि तो वे सड़क पर उतरें। इसके बाद से यह तय हो गया था कि मप्र में कुछ बड़ा राजनीतिक उलट-फेर हो सकता है।

कांग्रेस की कमजोरी, युवा नेतृत्व के लिए नहीं बना रही रास्ता

21वीं सदी के दूसरे दशक की समाप्ति के बाद भी कांग्रेस की राजनीतिक दुविधा और कमजोरी यह रही है कि आज भी पूरी पार्टी गांधी परिवार के नेतृत्व में ही एकजुटता दर्शाती है अथवा ऐसा दिखने की कोशिश करती है। लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। साथ ही, ऐलान किया कि अब कांग्रेस गांधी परिवार से इतर कोई अपना अध्यक्ष चुन ले। परंतु, दो माह बाद भी ऐसा नहीं हुआ। पुराने, बुजुर्ग व वरिष्ठ कांग्रेस नेता अपनी अहमियत और शक्ति बरकरार रखने के लिए हमेशा गांधी परिवार की तरफदारी करते रहते हैं। इसबार भी हुआ वही और आखिरकार 19 साल तक लगातार पार्टी की अध्यक्ष रहीं सोनिया गांधी को एकबार फिर कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया गया। और अब इतने दिनों बाद अब भी राहुल गांधी को ही अध्यक्ष बनाने की मांग कांग्रेस के कद्दावर समझे जाने वाले नेताओं की तरफ से आती रहती है।

ज्योतिरादित्य सिंधिया को मप्र का सीएम नहीं बनाया जाना मध्य प्रदेश की जनता का फैसला नहीं गांधी परिवार का फैसला था। दरअसल, कांग्रेस पुराने व परिवार के प्रति वफादारों से पीछा छुड़ाने का साहस नहीं कर पाती। बुजुर्ग नेताओं को साफ संदेश नहीं देना और युवा नेतृत्व पर भरोसा नहीं जताना कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी है।