जब 1989 में मुलायम सिंह ने पलट दी थी ‘बाज़ी’

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मुलायम सिंह यादव और अजित सिंह (फाइल डिजाइन फोटो)

चौधरी अजित सिंह के समथर्कों को तोड़कर मुलायम सिंह यादव पहली बार उत्तर प्रदेश के सीएम बने और राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गए। जबकि, चौधरी अजित सिंह राजनीति में आजतक पांव नहीं जमा पाए।

मनोज कुमार तिवारी/ रिपोर्ट4इंडिया।

नई दिल्ली। महाराष्ट्र में सत्ता बनाने व बिगाड़ने का जो खेल चल रहा है, वह भारतीय राजनीति में कोई नहीं है। हालांकि, कांग्रेस जब भारत में एकाधिकार के साथ राज करती थी, तब नेहरू-इंदिरा को जैसा मन करता था वैसी ही राजनीति व सरकार चलती थी। तब भारतीय राजनीति का न तो इतना विकेंद्रीकरण हुआ था और न ही विपक्ष या राजनीतिक पार्टियां इतनी संख्या में और इतना सशक्त थी। परंतु, इंदिरा गांधी के अवसान और राजीव गांधी की पहली राजनीतिक पारी की समाप्ति के बाद कांग्रेस कमजोर हो गई।

आज से 40 साल पहले 1989 में उत्तर प्रदेश में महाराष्ट्र की तरह ही राजनीतिक तस्वीर सामने आई थी। तत्कालीन जनता दल का गठन जनता पार्टी, जनमोर्चा, लोकदल (ए) और लोकदल (बी) के विलय से हुआ था, जिसके नेतृत्व में 1989 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और चौधरी अजित सिंह के नाम का ऐलान मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हुआ था।

विधानसभा चुनाव में जनता दल को 208 सीटें प्राप्त हुईं थीं जो बहुमत से 6 कम थी। उस समय संयुक्त उत्तर प्रदेश विधानसभा में 425 सीटें थी और बहुमत का आंकड़ा 213 था। उस समय प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह थे, जिन्होंने घोषणा की थी कि चौधरी अजित सिंह मुख्यमंत्री जबकि मुलायम सिंह यादव उपमुख्यमंत्री बनेंगे।

शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी चल रही थी और उसी समय मुलायम सिंह यादव ने उप मुख्यमंत्री पद ठुकराते हुए मुख्यमंत्री पद पर अपना दावा ठोंक दिया। इस दौरान जनमोर्चा गुट के विधायकों ने उन्हें समर्थन दिया था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने फैसला लिया कि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए गुप्त मतदान किया जाएगा। मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमनभाई पटेल आदि नेता पर्यवेक्षकों के रूप में दिल्ली से लखनऊ गए। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने तत्कालीन माफिया डॉन डी.पी. यादव के सहयोग से अजीत सिंह के 11 वफादार विधायकों को अपने पाले में कर लिया। गुप्त मतदान में मुलायम सिंह यादव ने अपने प्रतिद्वंद्वी चौधरी अजीत सिंह को 5 वोटों से हराकर 5 दिसंबर 1989 को पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।

सीएम बनने के बाद मुलायम सिंह यादव उप्र की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी बनकर उभरे और उसे दौर के बाद से कभी भी कांग्रेस उबर नहीं पाई। बाद में 1992 में मुलायम सिंह जनता दल से अलग होकर समाजवादी पार्टी बनाई।