विक्रम संवत् 2077, 25 मार्च 2020 से चैत्र नवरात्रि के साथ शुरू हो रहा है। भारतीय नववर्ष की शुरुआत भी चैत्र प्रतिपदा से होती है जिसे नवसंवत्सर कहते हैं।
ज्योतिषाचार्य पंडित डॉ. कृष्णदत्त त्रिपाठी (नोएडा)/ प्रस्तुती- रिपोर्ट4इंडिया।
नई दिल्ली। धर्म-शास्त्र के अनुसार नवरात्रि पूजन कलश स्थापना के साथ शुरू होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को सूर्योदय पश्चात 10 घड़ी तक अथवा अभिजीत मुहूर्त में करना चाहिए। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्र आरम्भ हो जाता है। इस बार 25 मार्च 2020 को न ही चित्रा नक्षत्र और न ही वैधृति योग है। इस दिन रेवती नक्षत्र और ब्रह्म योग बन रहा है।
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
कलश स्थापन के लिए प्रात: काल 5.58 बजे से 09 बजे तक शुभ माना जाता है। यदि इस काल में घट स्थापित नहीं हो सका तो स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त दिन के 11.36 से 12.25 बजे तक शुभ रहेगा। वैसे, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा तिथि 25 मार्च को दोपहर 3.51 बजे तक है, इसलिए इससे पहले कलश स्थापन अवश्य करनी चाहिए।
शास्त्रानुसार यदि प्रतिपदा के दिन चित्रा नक्षत्र और वैधृति योग बन रही हो तो भी “अभिजीत मुहूर्त” में घट स्थापना तथा नवरात्र पूजन करना चाहिए।
सम्पूर्णप्रतिपद्येव चित्रायुक्तायदा भवेत।
वैधृत्यावापियुक्तास्यात्तदामध्यदिनेरावौ।।
अभिजितमुहुर्त्त यत्तत्र स्थापनमिष्यते। (अभिजीत मुहूर्त में कलश स्थापना करें)
25 मार्च, बुधवार, तिथि प्रतिपदा, रेवती नक्षत्र, व्रह्मा योग, करण भव बालव, शुक्ल पक्ष, चैत्र मास, मिथुन लग्न समय 10.49 बजे से 13.15 बजे, अभिजीत मुहूर्त 11.58 बजे से 12.49 बजे तक (राहुल काल 12.27 बजे से 13.59 बजे तक)।
2020 में चैत्र प्रतिपदा अभिजीत मुहूर्त 11:58 बजे से 12:49 बजे तक है। ज्योतिष शास्त्र में इसे स्वयं सिद्ध मुहूर्त माना गया। मिथुन लग्न में पड़ने के चलते इस लग्न में पूजा तथा कलश स्थापना शुभ है।
पंडित डॉ. कृष्दणदत्त त्रिपाठी के अनुसार कलश स्थापना स्थान को शुद्ध जल में गंगाजल डालकर साफ कर वहां अष्टदल का निर्माण करें। फिर, उसके उपर एक लकड़ी का पाटा रखें और उस पर लाल रंग का वस्त्र डालें। लाल वस्त्र पर पांच स्थान पर चावल रखें जो क्रमशः गणेशजी, मातृका, लोकपाल, नवग्रह तथा वरुण देव का स्थान है। साथ ही, चावल रखकर श्रीगणेजी का स्मरण कर उनसे स्थान ग्रहण करने का आग्रह करें। इसके बाद मातृका, लोकपाल, नवग्रह और वरुण देव को स्थापित करें और स्थान लेने का आह्वान करें। फिर गंगाजल से सभी को स्नान कराएं। स्नान के बाद तीन बार कलावा लपेटकर प्रत्येक देव को वस्त्र के रूप में अर्पित करें। अब प्रणाम जोड़कर सभी देवों का आह्वान करें।
देवों को स्थान देने के बाद अब आप अपने कलश के अनुसार जौ मिली मिट्टी बिछाएं। कलश में जल भरें। कलश में थोड़ा गंगाजल डालते हुए ‘ॐ वरुणाय नमः’ मंत्र पढ़ें और कलश को पूर्ण रूप से भर दें। आम के पत्ते का गुच्छा (पल्लव) डालें। जौ या कच्चा चावल कटोरे में भरकर कलश के ऊपर रखें। उसके उपर, लाल कपड़े से लपेटकर कच्चा नारियल कलश पर रख कलश को माथे के समीप लाएं और वरुण देवता को प्रणाम करते हुए रेत पर कलश स्थापित करें। कलश के ऊपर रोली से ॐ या स्वास्तिक लिखें। मां भगवती का ध्यान कर मां भगवती की तस्वीर या मूर्ति लगाएं। मां दुर्गा की षोडशोपचार विधि से पूजा करें और दीपक प्रज्ज्वलित करें।
अखंड ज्योति प्रज्जवलित करने हेतु-
नवरात्आरि के दौरान देवी को अखंड दीप अर्पित करने के लिए पहले भगवान सूर्य का ध्यान कर उन्हें अखंड ज्योति का गवाह बनने का निवेदन करते हुए ज्योति प्रज्ज्वलित करें। यह ज्योति पूरे नौ दिनों तक जलती है, ऐसी पक्की व्यवस्था करें। पुष्प के साथ मन में संकल्प लें कि मां मैं आज नवरात्र की प्रतिपदा से आपकी आराधना अमुक कार्य के लिए कर रहा/रही हूं, मेरी पूजा स्वीकार करके इष्ट कार्य को सिद्ध करें।
पूजा के समय यदि आप को कोई भी मंत्र नहीं आता हो, तो केवल दुर्गा सप्तशती में दिए गए नवार्ण मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे’ से सभी पूजन सामग्री चढ़ाएं। मां शक्ति का यह मंत्र अमोघ है। मां के श्रृंगार का सामान और नारियल-चुन्नी जरूर चढ़ाएं।
दुर्गा सप्तशती पाठ
दुर्गा सप्तशती पाठ संकल्प लेकर आरंभ करें। सिर्फ कवच आदि का पाठ कर व्रत रखना चाहते हैं, तो माता के नौ रूपों का ध्यान करके कवच और स्तोत्र का पाठ करें। इसके बाद आरती करें। दुर्गा सप्तशती का पूर्ण पाठ एक दिन में नहीं करना चाहते हैं, तो दुर्गा सप्तशती में दिए श्रीदुर्गा सप्तश्लोकी का 11 बार पाठ करके अंतिम दिन 108 आहुति देकर नवरात्र में श्री नवचंडी जपकर माता का पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।
माता दुर्गा के प्रथम रूप “शैलपुत्री” की उपासना के साथ नवरात्रि आरम्भ हो जाती है। शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण, माता दुर्गा के इस रूप का नाम शैलपुत्री पड़ा है। पार्वती और हेमवती भी इन्हीं के अन्य नाम हैं। माता के दाएँ हाथ में त्रिशूल तथा बाएँ हाथ में कमल पुष्प है। माता का वाहन वृषभ है। माता शैलपुत्री की पूजा-अर्चना निम्नलिखित मंत्रोच्चारण के साथ करनी चाहिए-
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥